Sadhana Shahi

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तंदुरुस्ती हजार नेमत (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु17-Feb-2024

दिनांक- 17.०2. 2024 दिवस- शनिवार विषय-तंदूरुस्ती हजार नेमत ( कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु

सीमा और रीमा दो सगी बहनें थी, सीमा अपने स्वास्थ्य को लेकर जितनी ही सतर्क , रीमा उतनी ही लापरवाह थी। सीमा प्रातः काल उठती प्राणायाम करती, योगा करती फिर नियत दिनचर्या से निवृत हो पूजा- पाठ करती उसके पश्चात विद्यालय जाती और एक स्वस्थ तरीके से अध्ययन- अध्यापन और अपने दैनिक क्रिया-कलापों को करती। इसके विपरीत रीमा रात के 1,2 बजे तक मोबाइल पर, लैपटॉप पर चैटिंग करती, सुबह स्कूल के दिनों लेट सो कर उठती और उठते ही स्कूल का ड्रेस पहन कर स्कूल के लिए निकल जाती। जिस दिन छुट्टी रहती उस दिन तो 10:00 बजे तक सो कर उठती, उठते ही पहले बेड टी लेती, बेड टी लेने के बाद तुरंत भरपेट भारी नाश्ता करती। नाश्ते में भी पिज़्ज़ा, बर्गर, चाऊमीन जैसी हानिकारक चीज़ें ही शामिल होतीं‌। जबकि सीमा के नाश्ते में रोटी-सब्जी, सलाद, जूस, ताजे फल, हरि सब्जियांँ, सलाद जैसी स्वास्थयवर्धक चीजें शामिल होती थीं।

रीमा, सीमा का मज़ाक़ उड़ाते हुए बोलती। यह ज़िंदगी एक बार मिली है मेरी जान इसे जी भर के जी लो। इस घास- फूस में क्या रखा है। यह घास- फूस खाते-खाते ही तुम दुनिया छोड़ जाओगी और दुनिया की अच्छी चीज़ों का कोई लुत्फ़ नहीं उठा पाओगी। इस पर सीमा मुस्कुराते हुए कहती रीमा अभी तुझे समझ में नहीं आ रहा है कि यह तू दुनिया की अच्छी चीज़ें खा रही है या मीठा ज़हर खा रही है। यह ज़हर तेरे शरीर में धीरे-धीरे अपना रंग दिखा रहा है और एक दिन आएगा जिस दिन यह पूरा रंग दिखा चुका होगा। तो तुझे फिर याद आएगा मेरा खाना, कि अगर तू भी मेरी तरह खाना खाई रहती तो आज इस तरह बेबस, लाचार, बीमार, बेचारी सी बनी बिस्तर पर न पड़ी होती। इस पर रीमा ठहाके लगाकर हंँसती और कहती तेरी तो बस दार्शनिकों की तरह बातें ही सुन लो। इस पर सीमा झल्लाते हुए माथा-पीटती और बड़बड़ाती हे ईश्वर! इस लड़की को बुद्धि दीजिए।

समय आगे बीतता रहा दोनों 12वीं पास करने के पश्चात बाहर पढ़ने के लिए चली गईं। सीमा बाहर जाने के बाद भी अपनी दिनचर्या पर पूरा ध्यान देती ताकि वह किसी भी प्रकार के रोग की शिकार न हो। जबकि रीमा, रीमा को तो खुली आज़ादी मिल गई थी। वह हॉस्टल का तेल युक्त खाना खाती उसके अलावा ऑनलाइन आर्डर करके भी फास्ट फूड खाती। एक साल बीतते- बीतते रीमा को लीवर में प्रॉब्लम हो गया। उसे कुछ भी खाती पचता ही नहीं। शुरू-शुरू में तो लगा गैस बन रहा है और उसने अपने कॉलेज के पास ही अस्पताल में दिखाया लेकिन बात जब यहांँ तक आ गई कि एक चम्मच भी ख़ाना उसे नहीं पचता तब वह घर आई और रीमा के मम्मी-पापा ने उसे कुशल चिकित्सक से दिखाया तो पता चला उसके लीवर में इतना इन्फेक्शन हो गया है कि उसका लंबा ट्रीटमेंट देना पड़ेगा हो सकता है लिवर ट्रांसप्लांट भी करना पड़े। और इसे अब हमेशा- हमेशा के लिए उबला हुआ सादा खाना, खाना होगा। रीमा इस बात को सुनते ही अवाक हो गई। यह कैसे संभव होगा एक नंबर की चटोरी रीमा उबला हुआ खाना कैसे खाएगी? जब यह बात सीमा को पता चली तो वह भी कॉलेज से छुट्टियांँ लेकर घर आई। सीमा को देखते ही रीमा रोने लगी और बोली मेरी बहन मैं तेरी बात मान गई रहती तो आज मैं इस तरह से लाचार, बेबस सी बिस्तर पर न पड़ी रहती। तब सीमा ने रीमा को समझाया देख हम अपना धन, संपत्ति, ख़ूबसूरती सबको सहेज कर रखते हैं, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि उसमें सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जो है , वह है हमारा स्वास्थ्य। स्वास्थ्य से ही तो सब कुछ जुड़ा हुआ है और तूने स्वास्थ्य के साथ ही खिलवाड़ किया। अब बता समय, पैसा, तेरी पढ़ाई सब कुछ प्रभावित होगा न। और जिस खाने के लिए तू मरती थी वह ख़ाना अब तुझसे सदा- सदा के लिए छिन गया। अगर तू सही दिनचर्या का पालन करके खाने-पीने पर रोक लगाकर खाई रहती तो दस दिन में एक बार दो बार फास्ट फूड खा सकती थी। लेकिन तूने फास्ट फूड को ही अपने जीने का सहारा बना लिया था और अब उबला हुआ खाना तेरे जीने का सहारा हो गया है। मेरी बहन हमेशा याद रखना तंदुरुस्ती हजार नेमत के बराबर है। जो तंदुरुस्त है उसके पास दुनिया की हर ख़ुशी है।

इसीलिए हमारे ऋषि-मुनि कह गए हैं, 'पहला सुखी निरोगी काया, दूसरा सुखी जेब हो माया। ' लेकिन जेब में माया होने के लिए भी काया का सुखी होना परमावश्यक है। क्योंकि जब काया ही सुखी नहीं रहेगी तब माया कमाएंँगे कैसे?

हमारे मनीषी भी स्वास्थ्य के लिए नियमों का पालन करने पर ज़ोर देते थे तभी वो सैकड़ों वर्षों तक स्वस्थ एवं निरोगी जीवन जीते थे।

स्वास्थ्य मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी है।आदमी लाख दौलतमंद और धनी हो जब वह तंदुरुस्त नहीं है तो कुछ नहीं है। अगर स्वास्थ्य है तो सब कुछ है, तंदुरुस्ती से बढ़ कर कोई आशीर्वाद या दौलत नहीं।

इसीलिए कहा जाता है- तंदुरुस्ती है जहांँ, खुशियांँ बसती है वहांँ।

अतः आज से तू ख़ुद से वादा कर कि तू इस विषाक्त खाने की तरफ़ मुड़ के नहीं देखेगी। ईश्वर ने चाहा तो तू बहुत जल्द ठीक हो जाएगी। लेकिन ठीक होने के पश्चात भी तू यह याद रखना कि तुझे इस ज़हर को फिर से अपने जीवन का अभिन्न अंग नहीं बनाना है हांँ ठीक है, स्वाद को बदलने खा़तिर महीने में एक से दो बार तो खा सकती है।

साधना शाही, वाराणसी

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4 Comments

Gunjan Kamal

20-Feb-2024 03:15 PM

👌🏻👏🏻

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Mohammed urooj khan

19-Feb-2024 12:15 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Rupesh Kumar

18-Feb-2024 05:26 PM

बहुत खूब

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